चल मन् चल उस और चले जहाँ होता ह्रदय प्रफुल्लित भी
अपनी मन की पीड़ा से उलझन से सन्नाटो से
दूर उसी पर्वत की गोद मे... जहाँ होता ह्रदय प्रफुल्लित भी...
sheetal जल की कल कल बहती, क्षीण कलेवर क्षिप्रा तट तर
तरु तमाल हिम्ताल टेल जहा होता ह्रदय प्रफुल्लित भी,
सन्नाटो की नीरवता ओढ़े निर्मल सा अम्बर हो
शीतल ता को ढांपे हो, और कही न इर्शाओ का
उच्चच स्वरों का आडम्बर हो
शान्ति फ़ैल सर्वत्र जहा मन शान्ति गीत ही गाता हो
दे कर सुख औरों को फिर मन आनंद मग्न समाता हो....
झूट द्वंद्व दुःख क्लेश लेश भर जहाँ न आश्रय पाta हो....
ब्रम्ह रूप मे अविरल निर्मल निर्झर बहती गंगा हो
काट ताप संताप हृदय के मन निर्मल हो चंगा हो .... चल मन चल उस और............