Wednesday, May 12, 2010

मेरे मन् के माधव.....


प्रश्न कई है जीवन के,

और हैं उन प्रश्नों के हल,

कौन जानना चाहे इनको,

एक यही बस है कौतुहल


समझ पाए मेरे शब्दों को

शब्दों की परिभाषा को

मेरे मन् की हर उलझन को,

इच्छा को अभिलाषा को


कौन समझता मेरे मन् को

सुनना चाहे कौन विचार,

कौन स्वीकारे या के नकारे

कौन करे इस पर व्यवहार?


मेरे मन् के मधुसूदन ने,

जब जब ये ही प्रश्न उठाया

अंतर मे बसते मोहन ने

तुमको हे उद्धव तब पाया

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